पेंशन और निजीकरण: पुरानी पेंशन के निजीकरण का परिणाम-NPS, और संस्थाओं के निजीकरण का परिणाम- सरकारी नौकरियाँ खत्म, शिक्षित युवा का कैरियर खत्म, बेरोजगारी मे वृद्धि, तथा प्राइवेट कंपनियों में शोषण..!
राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) का लागू होना ही सरकारी संस्थाओं के निजीकरण तथा पुरानी पेंशन योजना (OPS) के निजीकरण का ब्लूप्रिंट है। अर्थात निजीकरण से सरकारी संस्थान खत्म, और सरकारी संस्थान खत्म तो सरकारी नौकरियाँ खत्म, और जब नौकरियाँ खत्म तो बेरोजगारों का प्राइवेट कंपनियों में शोषण शुरू....
वर्तमान समय मे सबसे अधिक विरोध की आवश्यकता NPS और निजीकरण की होनी चाहिए, क्योंकि पेंशन का मुद्दा भी कोई छोटा मुद्दा नहीं था, जिसके लिए सदन मे हमारे शिक्षक व अन्य नेताओं ने जानते हुए शायद या अनजाने में पुरानी पेंशन का निजीकरण अर्थात NPS के विरोध की कोई आवाज नहीं उठाई और आज उसी का परिणाम है कि शेयर बाजार आधारित NPS, जो वास्तव में पेंशन योजना नहीं, बल्कि एक निवेश योजना है, हम सबके सामने है। इसकी कोई गारंटी भी नहीं है, और न ही वेतन से कटौती राशि की कोई सुरक्षा है। इसमें कोई भी चाहे वो सरकारी कर्मचारी, या छोटे बड़े दुकानदार हो, स्वेच्छा से हर माह एक निश्चित राशि का निवेश कर सकता है। इसीलिए यह NPS एक निवेश योजना है, ना कि पेंशन योजना..।
अब तो शिक्षा विभाग में भी निजी और स्वयंसेवी संस्थाओं के कदम बढ़ते जा रहे हैं। अगर पुरानी पेंशन जिंदा होती तो निजीकरण की कोई संभावना ही नहीं रहती। हम सभी आज भी एक दूसरे का मुंह देखते हुए सरकार को दोषी ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। आज अगर हम निजीकरण का शिकार हो रहे हैं तो उसका मूल कारण सिर्फ हमारी पुरानी पेंशन से वंचित हो जाना ही है। आज भी अगर हम सब इसी तरह खामोश रहे तो आने वाली पीढ़ियां यही कहेंगीं कि पहले के संगठनों ने यदि आवाज उठाई होती तो ऐसा न होता, जिस तरह से आज हम पुरानी पेंशन के लिए किसी हद तक पुराने संगठनों को दोषी मानते हैं।
आप स्यवं समझें कि पुरानी पेंशन को बचाने के लिए शायद पुराने संगठनों ने इसलिए आवाज नही उठाई, क्योंकि या तो उनको इसके लाभ हानि की पूर्ण जानकारी नहीं थी या उनको तो पेंशन मिलनी थी तो उन्होंने जरूरत नहीं समझी पर आज फिर वही इतिहास दोहराया जा रहा है, और यह भी सटीक है कि इतिहास स्यवं को दोहराता है। निजीकरण को लेकर इसमें भी हम युवाओं या आने वाले युवाओं को ही फंसना है। पुराने संगठन इसलिए आवाज नही उठाएंगे क्योंकि उनको पता है कि जब तक निजीकरण पूर्ण रूप से हावी होगा, हम विभाग से पुरानी पेंशन के साथ विदा हो चुके होंगे, और हम इसलिए नहीं बोल सकते क्योंकि हम अपने अधिकारों के लिए लड़ना और संघर्ष करना जानते ही नहीं.....।
इसलिए साथियों जागो और जगाओ, तथा अपनी आवाज स्यवं बनो। आइए हम सब एकसाथ मिलकर 26 जून के ट्विटर अभियान को सहयोग करते हुए सफल बनाए..! और "मेरा जुनून - 26 जून" को ट्विटर पर टाप ट्रेंड कराए..!
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