जय युवा जय अटेवा
पेंशन आन्दोलन में सूचना संचार प्राधौगिकी की उपयोगिता, वर्तमान कोरोना संकट और सरकारों द्वारा लगाए गए एस्मा के परिदृश्य में:-
प्रिय संघर्षशील पेंशविहीन साथियों, याद रखें-
26 जून को NMOPS/ATEWA के बैनर तले पेंशन बहाली और निजीकरण के खिलाफ ट्विटर महाअभियान को-
#RestoreOldPension
#PrivatizaionNoSolution
में जोरदार ट्वीट कर अपने मुद्दे को घर में बैठे ही ज्वलंत बनाने में अपनी महती भूमिका अदा करें।
याद रखें बूंद बूंद से ही सागर का निर्माण होता है। आपका अहम योगदान इस महाआन्दोलन को सशक्त बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अदम्य जिजीविषा से पेंशन आंदोलन को अग्रेतर लेकर चलने वाले पेंशनविहीन साथियों, आज कोरोना संकट के चलते भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व समुदाय नवीन बदलावों के परिदृश्य में ढलता दिख रहा है।
जब तक यह अनिश्चिकालीन संकट टल नहीं जाता तब तक जमीनी आंदोलनों के होने की संभावना अत्यंत नगण्य है। इस महान समस्या को दृष्टिगत करते हुए हमें पेंशन आंदोलन की नवीन संभावानाओं की तलाश आरम्भ करनी होंगी।
आज से 4 साल पहले जिस प्रकार सोशल मीडिया और सूचना, संचार तकनीकी के माध्यम से हम सब इस ज्वलंत मुद्दे पर बहुत शीघ्र एकता के सूत्र में बंधे, इसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। सोशल मीडिया हमेशा पेंशन आंदोलन की रीढ़ की हड्डी रहा है।
मुझे वो वक्त याद है जब आदरणीय विजय कुमार बन्धु जी के नेतृत्व में मैसेंजर से लोंगों के नम्बर निकाल कर जिलों में पेंशन आंदोलन पर चर्चा की गई और कारवां बना।
सूचना प्रद्योगिकी के बल पर ही मेन स्ट्रीम मीडिया द्वारा नजर अंदाज किये जाने पर भी हम सब अपनी बात सरकार और आमजनों तक पहुचाने में सफल रहे।
अभी हाल ही में बहुत कम संख्या में जागरूक साथियों ने ट्वीटर में कई बार पेंशन आंदोलन को टॉप ट्रेंड तक पहुंचा दिया। यह आप सबके त्याग और समपर्ण की ही देन है।
हम सबको यह सोचना होगा कि कोरोना काल मे हम सोशल मीडिया के माध्यम से इस आंदोलन को जीवंत रखें। कोरोना संकट तो खत्म हो जाएगा लेकिन युवाओं के बुढापे का संकट खत्म नहीं हुआ है, अभी आने वाला है। इसको दृष्टिगत रखते हुए हमें सोशल मीडिया में अपनी सक्रियता बढ़ाने की आवश्यकता है, तथा साथियों को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है।
अभी हाल ही में दो दिन पहले भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रही तीन संस्थाओं की वेबसाइटों को बैन कर दिया, क्योंकि ये संस्थाएं नई विकास योजना में पर्यवारण संरक्षण की अनदेखी करने की मुहिम अपने पोर्टल के माध्यम से चला रही थीं, जिसमें उन्हें जबरदस्त समर्थन मिल रहा था। इसने सरकार को हिला कर रख दिया और सरकार ने उनकी आवाज दबाने की कोशिश की लेकिन वो और बढ़ गयी।
चीनी सरकार के खिलाफ हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों के आंदोलन को विश्व परिद्रश्य में पहुचाने में सोशल मीडिया का सफल साथ है, जबकि वहां तो मीडिया कवरेज के नाम पर कुछ भी नगण्य है।
ऐसी स्थितियों में आंदोलन को जीवंतता प्रदान करने के लिए, आंदोलनों से सीख लेते हुए हम सबको भी सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करना आवश्यक हो गया है।
साथियों मंजिल में कठिनाई कितनी भी आये, नए रास्ते हमेशा तैयार रहते हैं, आवश्यकता है उन्हें संभावनाएं बनाने की...।
सभी पेंशन विहीन जागरूक साथियों से निवेदन में सोशल मीडिया में ज्यादा से ज्यादा सक्रियता निभाएं, तथा अपने साथियों को भी जागरूक करने में मदद करें।
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा गुण यह है कि हम घर बैठे इस आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाते हैं। जो साथी जमीन में संघर्ष करने में असहजता महसूस करते हैं, उनके लिए सोशल मीडिया एक बेहतर प्लेटफार्म है। हम अपने बुढापे के लिए एक ट्वीट करना तो सीख ही सकते हैं।
जब आज सरकार बिना संसाधन उपलब्ध कराए सोशल मीडिया के माध्यम से अपने अनेक प्रकार के विभागीय कार्य करवाने पर आमादा है, तो हम लोग अपने आंदोलन की आवाज सोशलमीडिया से क्यों नहीं उठा सकते हैं...??
अगर अन्य कार्य जरूरी है तो आंदोलन भी जरूरी है।
अतः आप सभी से निवेदन है, कि
पेंशन आंदोलन को आगे बढ़ाएं,
सोशल मीडिया में सक्रियता दिखाएं।
ट्विटर , फेसबुक , व्हाट्सएप, यू ट्यूब के माध्यम से पेंशन आंदोलन को बढ़ाने में सक्रियता निभाएं।
लगातार किये गए प्रयास कभी विफल नहीं होते हैं।
भविष्य में हम सबके के यह प्रयास आंदोलन के लिए एक बड़ा मार्ग प्रशस्त करेंगे।
आप सभी से सक्रियता की आशा करते हुए...
माना वो दूर किनारा है, फिर साहस ने ललकारा है,
तब हाथ बांध बैठे रहना, वीरों को नहीं गवाँरा है।
पेंशन आंदोलन जिन्दाबाद..!
डॉ0 रामाशीष सिंह अमर रहे।
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संघर्ष अभिवादन के साथ आपका..
-कुलदीप सैनी कुली, प्रदेशीय संगठन मंत्री, अटेवा उत्तर प्रदेश।
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